Remember Me     Forgot Login?   Sign up  
दांत लौटाएंगे आंखों की रोशनी: दांत-इन-आई सर्जरी कैसे काम करती है? दांत-इन-आई सर्जरी ने चिकित्सा क्षेत्र में एक नई क्रांति की शुरुआत की है। यह उन लोगों के लिए उम्मीद की किरण है, जिनकी दृष्टिहीनता का इलाज अन्य पारंपरिक तरीकों से संभव नहीं था। हालांकि यह एक जटिल और दुर्लभ प्रक्रिया है, लेकिन इसके परिणाम नेत्रहीन लोगों के लिए बेहद आशाजनक साबित हो रहे हैं।

 

आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में दिन-ब-दिन नए चमत्कार देखने को मिल रहे हैं, और उनमें से एक है दांत-इन-आई सर्जरी, जिसे तकनीकी रूप से ऑस्टियो-ऑडोंटो-केराटोप्रोस्थेसिस (OOKP) कहा जाता है। यह एक अनोखी सर्जिकल प्रक्रिया है, जिसका उद्देश्य नेत्रहीन व्यक्तियों को उनकी दृष्टि वापस देना है, खासकर उन मामलों में जब पारंपरिक सर्जरी या कॉर्नियल प्रत्यारोपण काम नहीं करते। दांत-इन-आई सर्जरी क्या है? दांत-इन-आई सर्जरी में व्यक्ति के अपने ही दांत के एक हिस्से का उपयोग करके आंख की रोशनी बहाल की जाती है। इस प्रक्रिया का आविष्कार 1960 के दशक में इटली में किया गया था और यह उन लोगों के लिए एक अंतिम उपाय के रूप में विकसित की गई थी, जिनकी आँखों की सतह इतनी क्षतिग्रस्त हो गई हो कि कॉर्निया ट्रांसप्लांट काम न कर सके। प्रक्रिया कैसे काम करती है? यह सर्जरी दो चरणों में की जाती है: 1. पहला चरण: दांत का उपयोग पहले चरण में, मरीज के दांत का एक छोटा टुकड़ा, आमतौर पर कैनाइन दांत, निकाला जाता है। इस दांत के टुकड़े में एक छोटा छेद किया जाता है, जिसमें कृत्रिम लेंस फिट किया जाता है। इस दांत के टुकड़े को फिर से तैयार किया जाता है ताकि वह "दांत-लेंस कॉम्बिनेशन" का निर्माण करे। 2. दांत को आंख में लगाना इसके बाद, यह दांत-लेंस कॉम्बिनेशन को आंख के अंदर रखा जाता है, और आंख की क्षतिग्रस्त कॉर्निया की जगह पर प्रत्यारोपित किया जाता है। आंख के अन्य हिस्से, जैसे कि पलकें और आँख की सतह, इस नए लेंस के चारों ओर मरम्मत की जाती हैं, ताकि लेंस को स्थिरता और सुरक्षा मिले। 3. लेंस को तैयार करना और रोशनी बहाल करना कुछ महीनों के बाद, जब सर्जरी की गई जगह पूरी तरह से ठीक हो जाती है, तो दांत-लेंस कॉम्बिनेशन को आंख में स्थायी रूप से प्रत्यारोपित किया जाता है, जिससे मरीज को देखने में मदद मिलती है। किसे फायदा होता है? यह प्रक्रिया उन मरीजों के लिए फायदेमंद है, जिनकी आंखों की बाहरी सतह (कॉर्निया) इतनी बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो चुकी है कि सामान्य कॉर्नियल ट्रांसप्लांट उनके लिए कारगर नहीं हो सकता। इसके उदाहरण हैं: रासायनिक जलन गंभीर शुष्क आंख की समस्याएं जलने या चोट की वजह से हुई कॉर्नियल क्षति अन्य कॉर्नियल ट्रांसप्लांट असफल हो चुके हों इस प्रक्रिया के फायदे नेत्रहीनता का इलाज: यह उन मरीजों को देखने की क्षमता वापस देने में मदद करता है, जिनकी नेत्रहीनता किसी भी अन्य साधारण इलाज से ठीक नहीं हो पाई। स्थायित्व: दांत के टुकड़े को आंख में फिट करने से यह प्रक्रिया अधिक स्थायी और लंबे समय तक टिकाऊ होती है। सफलता दर: यह प्रक्रिया जटिल होने के बावजूद, कई मामलों में सफल रही है और मरीजों की दृष्टि बहाल करने में कारगर साबित हुई है। जोखिम और सीमाएं जटिल सर्जरी: यह एक बहुत ही जटिल सर्जिकल प्रक्रिया है, जिसके लिए अत्यधिक विशेषज्ञता की आवश्यकता होती है। लंबी रिकवरी: मरीज को पूरी तरह ठीक होने में कई महीनों का समय लग सकता है। संभावित जटिलताएं: संक्रमण, लेंस का हटना या आंख में और भी समस्याएं होने का खतरा बना रहता है।