जैव-विविधता एवं पारिस्थितिकी सेवाओं के अंतर सरकारी विज्ञान नीति मंच (आईपीबीईएस) ने अपनी वैश्विक आकलन रिपोर्ट जारी कर दी. इस रिपोर्ट में ग्रह की जैव विविधता पर खतरों से आगाह किया गया है.

संयुक्त राष्ट्र ने 06 मई 2019 को जारी एक आकलन रिपोर्ट में कहा कि मानवता उसी प्राकृतिक विश्व को तेजी से नष्ट कर रही है, जिस पर उसकी समृद्धि और उसका अस्तित्व टिका है.
समरी फॉर पॉलिसीमेकर रिपोर्ट को 450 विशेषज्ञों द्वारा तैयार 132 देशों की एक बैठक में मान्यता दी गई. बैठक की अध्यक्षता करने वाले रॉबर्ट वाटसन ने कहा कि जंगलों, महासागरों, भूमि एवं वायु के दशकों से हो रहे दोहन और उन्हें जहरीला बनाए जाने के कारण हुए बदलावों ने विश्व को खतरे में डाल दिया है.
जैव-विविधता एवं पारिस्थितिकी सेवाओं के अंतर सरकारी विज्ञान नीति मंच (आईपीबीईएस) ने अपनी वैश्विक आकलन रिपोर्ट जारी कर दी. इस रिपोर्ट में ग्रह की जैव विविधता पर खतरों से आगाह किया गया है.
रिपोर्ट से संबंधित मुख्य बिंदु:
• विशेषज्ञों के अनुसार जानवरों और पौधों की दस लाख प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गई हैं. इनमें से बहुत से प्रजातियों पर कुछ दशकों में ही विलुप्त हो जाने का खतरा मंडरा रहा है.
• आकलन के अनुसार, ये प्रजातियां पिछले एक करोड़ वर्ष की तुलना में हजारों गुणा तेजी से विलुप्त हो रही हैं.
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• ये प्रजातियां जिस तरह से विलुप्त हो रही हैं, उसे देखते हुए ऐसी संदेह है कि 6 करोड़ 60 लाख वर्ष पहले डायनोसोर के विलुप्त होने के बाद से पृथ्वी पर पहली बार इतनी बड़ी संख्या में प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा है.
• रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रकृति को बचाने हेतु बड़े बदलावों की आवश्यकता है. हमें करीब-करीब प्रत्येक चीज के उत्पादन एवं पैदावार और उसके उपभोग के तरीके में बदलाव करना होगा.
• रिपोर्ट में बताया गया है कि किस प्रकार हमारी प्रजातियों की बढ़ती पहुंच और भूख ने सभ्यता को बनाए रखने वाले संसाधनों के प्राकृतिक नवीनीकरण को संकट में डाल दिया है.
अक्टूबर की अपनी रिपोर्ट में संयुक्त राष्ट्र के पर्यावरण विज्ञान पैनल ने ग्लोबल वार्मिंग के सबंध में इसी प्रकार की गंभीर तस्वीर पेश की थी. जर्मनी में हेल्महोल्त्ज सेंटर फॉर एनवायरमेंटल रिसर्च के प्रफेसर और संयुक्त राष्ट्र के जैव विविधता एवं पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं पर अंतर सरकारी विज्ञान-नीति मंच (आईपीबीईएस) के सह अध्यक्ष जोसेफ सेटल ने कहा कि लघुकाल में मनुष्यों पर खतरा नहीं है.